BA Semester-5 Paper-1 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2801
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?

अथवा
बौद्ध दर्शन से क्या आशय है? अथवा
बौद्ध दर्शन के प्रतीत्यसमुत्पादवाद की विवेचना कीजिये। अथवा
बुद्ध के अनुसार दुःख के कारणों की व्याख्या कीजिए। अथवा
बौद्ध दर्शन के प्रतीत्य समुत्पाद सिद्धांत की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। अथवा
बौद्ध दर्शन के 'प्रतीत्यसमुत्पाद' की व्याख्या कीजिये।
अथवा
बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्यों की विवेचना कीजिए। अथवा
सिद्ध कीजिए कि बौद्ध दर्शन क्षण भंगवादी है। अथवा
बौद्ध दर्शन के प्रथम आर्य सत्य की विवेचना कीजिए। अथवा
बौद्ध दर्शन के चार आर्य सत्य की व्याख्या कीजिए। अथवा
बुद्ध ने कौन से दुःख के कारणों के चक्र बताए? अथवा
बौद्ध दर्शन के तृतीय आर्य सत्य की विवेचना कीजिए।

उत्तर -

उपनिषदों के अनुसार, एकमात्र सद्स्तु नित्य ही है आत्मा वही है जो सच्चिदानन्द ब्रह्म है परन्तु बुद्ध का सिद्धान्त इसके विपरीत है। इसके अनुसार सभी वस्तु अनित्य हैं सब कुछ दुःखमय है, आत्मा, मन और देह का समुदाय मात्र है जगत का रचयिता कोई नहीं है। बौद्ध दर्शन के प्रवर्त्तक और गुरु गौतम बुद्ध माने जाते हैं। गौतम बुद्ध का वर्तमान नाम सिद्धार्थ था। इनका जन्म ईसा से पूर्व छठी शताब्दी में बताया जाता है इनका जन्म हिमालय के समीप कपिलवस्तु नामक स्थान में एक राजपरिवार में हुआ था इनका पालन-पोषण बहुत प्यार से हुआ इनका हृदय बहुत भावुक था। बीमार, रोगी तथा पीड़ित व्यक्ति तथा मृतक मनुष्यों के देखने के बाद उन्होंने जाना कि जीवन दुःखों से भरा हुआ है। वह जानना चाहते थे कि संसार में इतना दुःख क्यों होता है, इसी कारण वे राजभवन को सुख छोड़कर जंगल की तरफ चले गये तथा जीवन के दुःखों से मुक्त होने का उपाय खोजने लगे। इन्होंने पहले मन की वासनाओं पर नियंत्रण किया फिर आत्म साधना में डूब गये तथा बोधि ( Enlightionment) की प्राप्ति हुई इससे इन्हें सच्चा ज्ञान का प्रकाश दिखाई पड़ा तथा महात्मा बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए। कुछ व्यक्ति इन्हें वीर (Hero) या जीन (Victor) के नाम से जानते हैं। इसके बाद इन्हें तथागत (One who has known thing is they really are) के रूप में माना इन्हें अर्हत (the worthy) भी कहा जाता है। बुद्ध ने स्थान-स्थान पर घूमकर बौद्ध धर्म का प्रसार किया व इनके उपदेशों को मानने वाले बौद्ध धर्मावलम्बी कहलाये। बौद्ध धर्म का प्रचार लंका, बर्मा, चीन, जापान, तिब्बत आदि में हुआ।

महात्मा बुद्ध के समय देश में आध्यात्मिक अशान्ति के बादल मंडरा रहे थे लोग ईश्वर से डरते थे तथा पूजा-पाठ बलि वेदी को अपनाते थे। वैदिक क्रियाकलापों का बोलबाला था तथा तांत्रिक साधना के लिए मनुष्यों को बलि चढ़ाया जाता है। इसी दौरान महात्मा बुद्ध ने अहिंसा का उपदेश दिया।

बौद्ध दर्शन में प्रचार का स्वरूप मौखिक था बुद्ध ने स्वयं कुछ भी नहीं लिखा वे तो केवल बोलते थे बुद्ध के उपदेशों का ज्ञान हमें जो आज प्राप्त है उसका आधार है 'त्रिपिटक'। त्रिपटक में ही उनके शिष्यों ने उनके उपदेशों का संग्रह किया। पिटक का अर्थ है बक्सा (box)।

त्रिपिटक में तीन ज्ञान की पेटियाँ हैं-

१. विनय पिटक, २. सुत्तपिटक, ३. अभिधम्म पिटक।

विनय पिटक में आचरण सम्बन्ध बातें हैं। सुत्तपिटक में उपदेशों का वर्णन तथा धर्म सम्बन्धी बातें है अभिधम्मपिटक में दार्शनिक विचारों की चर्चा की गई है। बौद्ध धर्म की दो प्रधान शाखायें हैं-

१. हीनयान, २. महायान।

पीलश्चित त्रिपिटक ही हीनयान का मौलिक धर्म ग्रन्थ है हीनयान का प्रचार दक्षिण भारत में अधिक हुआ। महायान का प्रचार विदेशों में अधिक हुआ जैसे तिब्बत्, चीन, जापान आदि।

तत्व सम्बन्धी विचार

महात्मा बुद्ध धर्म प्रचारक माने जाते हैं दार्शनिक नहीं। उनके अनुसार, दार्शनिक विचार जीवन की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते इसलिए तत्व सम्बन्धी विचार प्रस्तुत किये गये। तत्व सम्बन्धी विचारों को भी महात्मा बुद्ध अनावश्यक और असामाजिक मानते हैं। उनके अनुसार, दार्शनिक प्रश्नों के उत्तर व्यक्ति के पास नहीं है इसी कारण महात्मा बुद्ध ने दार्शनिक प्रश्नों को व्यर्थ की वस्तु माना कुछ प्रश्न निम्न हैं-

१. क्या यह संसार शाश्वत है?
२. क्या यह संसार अशाश्वत है?
३. क्या यह संसार सान्त (Finite ) है?
४. क्या यह संसार अनन्त (Infinite ) है?
५. क्या आत्मा और शरीर एक है?
६. क्या आत्मा शरीर से भिन्न है?
७. क्या मृत्यु के बाद तथागत का फिर से जन्म होता है?
८. क्या मृत्यु के बाद फिर जन्म नहीं होता है?
९. क्या मृत्यु के बाद उनका पुनर्जन्म होता भी है और नहीं भी होता है?
१०. क्या उनका पुनर्जन्म होना और पुनर्जन्म नहीं होना दोनों ही बातें गलत हैं?

ये सभी प्रश्न दार्शनिक हैं बौद्ध धर्म के पाली साहित्य में इन प्रश्नों को अव्याकृतानि (Unprofitable questions) कहते हैं। इन प्रश्नों को सुनकर महात्मा बुद्ध मौन हो जाते थे। उनका कहना था यह संसार दुःख से भरा है अतः हमारे जीवन का उद्देश्य दुःखों को दूर करना है न कि संसार के कारण सम्बन्धी बातों को खोजना। उनके अनुसार, संसार में जो दुःख है पहले उसे दूर करना चाहिये। दुःख कहाँ से आता है? संसार की उत्पत्ति कैसे हुई इन सभी प्रश्नों का उत्तर ढूँढ़ना व्यर्थ है। महात्मा बुद्ध इस प्रकार के प्रश्नों को सुनकर मौन हो जाते थे। इसका आलोचकों ने अलग-अलग अर्थ लगाया कुछ व्यक्ति इसे संशयवादी कहते हैं, कुछ यथार्थवादी, कुछ रहस्यावादी।

कुछ व्यक्ति तो उनके मौन का अर्थ बुद्ध की अज्ञानता से भी लेते हैं। महात्मा बुद्ध ने जो उपदेश दिया उन्हें आर्य सत्य के नाम से जाना जाता है।

महात्मा बुद्ध के अनुसार, "चार आर्य सत्यों के विवेचन से भी लाभ हो सकता है इसी का धर्म मूल सिद्धान्तों से सम्बन्ध है इसी से अनासक्ति ( aversion), वासनाओं का नाश (end of passions ), दुःखों का अन्त ( cessation), मानसिक शान्ति (Quiescence), ज्ञान ( knowledge), प्रज्ञा ( supreme wisdom) तथा निर्वाण सम्भव हो सकते हैं।'

महामा बुद्ध महान उपदेशक थे उनका उद्देश्य दार्शनिक विचारों का विवेचन करना नहीं था अपितु वह संसार के दुःखों को दूर करना चाहते थे। इसलिए बुद्ध ने चार आर्य सत्य बताये-

१. यह संसार दुःखों से भरा है। (The World is full of Suffering).
२. दुःखों के कारण होते हैं। (There is Cause of Suffering).
३. दुःखों का अन्त सम्भव है। (There is an End or Cessation of Suffering).
४. दुःखों का अन्त करने के उपाय अथवा रास्ते हैं। (There is a path for the Cessatin of Suffering).

पहला आर्य सत्य है दुःख "जन्म में दुःख है, रोग में दुःख है, मृत्यु में दुःख है। अप्रिय की प्राप्ति में दुःख है, प्रिय की अप्राप्ति में दुःख है, राग से उत्पन्न होने वाले पंच स्कन्ध दुःखमय है।" "सारा संसार आग से झुलस रहा है, आमोद-प्रमोद के लिए स्थान कहाँ?" "इन्द्रिय सुख अनित्य है, क्षणभर ही रहता है। सुख के बाद दुःख अवश्यम्भावी है। सुख-दुःख ही है।" "आमोद से विषाद होता है। आमोद से भय होता है।

सब भौतिक और मानसिक हानियाँ दुःख उत्पन्न करती हैं विषय भोग की वस्तुओं की हानि से दुःख होता है। दुनिया में दुखियों के लिए जितने आँसू बहाये हैं उनका पानी महासागर से भी अधिक है दुनिया में ऐसा कोई स्थान नहीं जहाँ मृत्यु से बचा जा सकें। संसार निःसत्व है, क्षण भंगुर है यह हृदय में लगे शर के समान है जिसे यह शर लग जाता हैं वह दुःख के कारण इधर-उधर दौड़ता है जब वह शर को निकाल देता है तभी शान्ति से बैठ पाता है। संसार मृत्यु और क्षय से ग्रस्त है अतः ज्ञानी मनुष्य शोक नहीं करता है। चुपचाप रोना या शोक करना व्यर्थ है। जब मकान में आग लगती है तो उसे पानी से बुझाना पड़ता है, जीवन दुःखों से भरा है तथा सारी सृष्टि दुःख स्वरूप है। रास्ते का अन्त तो आशावाद में होता है क्योंकि निर्वाण ही सांसारिक दुःखों को दूर करता है व आलौकिक शक्ति प्रदान करता है।

दूसरा आर्य सत्य है कि दुःख का कोई कारण होता है। तृष्णा तीन प्रकार की होती है-

१. काम तृष्णा अर्थात् विषय भोग का इच्छा,
२. भाव-तृष्णा अर्थात् अस्तित्व की इच्छा,
३. विभव-तृष्णा अर्थात् धन और शक्ति की इच्छा।

वास्तव में तृष्णा ही सब दुःखों की जड़ है तृष्णा के भी किसी वस्तु के पीछे भागती है, कभी किसी तृष्णा ही पुनर्जन्म का कारण बनती है। दुःख के कारणों की खोज निकालने में बुद्ध ने विशेष सिद्धान्त बताया जिसे प्रतीत्य समुत्पाद (The law of dependent origination) कहते हैं। इसके अनुसार, संसार के सभी पदार्थ कारणों से भरे हैं कोई वस्तु बिना कारण नहीं हो सकती दुःख का अस्तित्व भी संसार में बिना कारण नहीं हो सकता।

बुद्ध ने दुःख के अनेक प्रकार बताये जैसे -

१. जरा, २. रोग, ३. शारीरिक पीड़ा, ४. निराशा, ५. शोक, ६. उदासी आदि।

बुद्ध के दुःख के कारण

बुद्ध ने दुःख के १२ कारणों का चक्र बताया-

१. दुःख है। २. दुःख का कारण जाति है। ३. जाति का कारण भव है। ४. भव का कारण उपादान या अभिलाषा है। ५. उपादान का कारण तृष्ण है। ६. तृष्णा का कारण वेदना या इन्द्रियानुभूति है। ७. वेदना का कारण स्पर्श है। स्पर्श का कारण षडायतन है। ६. षडायतन का कारण नामरूप है। १०. नामरूप का कारण विज्ञान या चेतना है। ११. विज्ञान का कारण संस्कार है। १२. संस्कार का कारण अविद्या है।

तीसरा आर्य सत्य है दुःखों का निरोध दुःखों के निरोध का अर्थ है तृष्णा या अस्तित्व की चाह या विनाश। तृष्णा का परित्याग, उससे विच्छेद होना उसे स्थान से हटा देना बुद्ध धर्म के अनुसार दुःखों का अन्त सम्भव है इसी के दुःख निरोध या निर्वाण कहा जाता है।

बुद्ध के अनुसार, निर्वाण वह अवस्था है जहाँ पर पहुँचने के बाद मनुष्य के सारे दुःखों का नाश हो जाता है। राग, द्वेष पर विजय प्राप्त तृष्णा, अभिलाषा पर नियंत्रण करना, शुद्ध आचरण या शील के साथ जीवन व्यतीत करना, ध्यान मग्न होना आदि यह निर्वाण की विशेषतायें हैं। निर्वाण की अवस्था में मनुष्य को एक आलौकिक प्रकाश देखने को मिलता है, जिसे प्रज्ञा कहते हैं इसे ही बोधि के नाम से. जाना जाता है।

निर्वाण के स्वरूप के विषय में कहा जाता है कि निर्वाण समुद्र की तरह गहरा और पर्वत की तरह ऊँचा और मधु की तरह मीठा है। निर्वाण की प्राप्ति इस जीवन में सम्भव है निर्वाण से यह अर्थ नहीं लगाना चाहिये कि इसकी प्राप्ति मृत्यु के बाद ही हो सकती है इसलिए निर्वाण हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी है। निर्वाण का अर्थ अर्कमण्यता नहीं है ऐसा कहा जाता है कि निर्वाण प्राप्त करने के बाद मनुष्य निष्क्रिय हो जाता है तथा उसे दुःखों से छुटकारा मिला जाता है। बुद्ध के अनुसार, निर्वाण प्राप्ति के बाद भी मानव जीवन सक्रिय रहता है इसी कारण महात्मा बुद्ध भी 'बोधि' प्राप्त करने के पश्चात् सक्रिय बने रहे।

बुद्ध के अनुसार, निर्वाण का अर्थ जीवन का अन्त नहीं होता अपितु दुःखों का अन्त होता है। निर्वाण प्राप्त करने के बाद मनुष्य अज्ञानता को दूर करके बोधि को प्राप्त करता है। वह जन्ममरण के चक्र में घूमने से बच जाता है निर्वाण से अज्ञानता का नाश होता है।

महात्मा बुद्ध ने निर्वाण का अर्थ मुक्ति बताया अर्थात् निर्वाण की अवस्था में व्यक्ति दुःखों से बच जाता है।

वान का अर्थ है इस जीवन से दूसरे जीवन में प्रवेश करने का रास्ता अर्थात् जीवनमरण के चक्र से मुक्ति। निर्वाण के द्वारा जो आलौकिक ज्ञान मिलता है जो सुख मिलता है वह स्थाई होता है। चौथा आर्य सत्य है दुःख निरोध का उपाय यह उपाय आठ रास्तों से प्राप्त किया जाता है। इन्हें अष्टांग मार्ग (Eight fold noblepath) के नाम से जाना जाता है। ये हैं -

1. सम्यक् दृष्टि,
2. सम्यक् संकल्प,
3. सम्यक् वाक्.
4. सम्यक् कर्म,
5. सम्यक् आजीविका,
6. सम्यक् व्यायाम,
7. सम्यक् स्मृति,
8. सम्यक् समाधि।

जब इन चार आर्य सत्यों का ज्ञान हो जाता है तब भवतृष्णा तिरोहित हो जाती है। पुनर्जन्म का कारण नष्ट हो जाता है व पुनर्जन्म नहीं होता। अष्टांग मार्ग शील, समाधि और प्रज्ञा का मार्ग है, बौद्ध दर्शन सुखवादी है, क्योंकि यह जीवन को दुःखमय मानता है लेकिन इस जीवन में दुःख का उपाय सम्भव है इसलिए यह सुखान्तवादी है।

जैन धर्म के समान ही बौद्ध धर्म भी निरीश्वरवादी है तथा पुनर्जन्म को मानते हुए भी वह शाश्वत आत्मा की सत्ता को नहीं मानता व कर्म के नियमों को मानता है उसका लक्ष्य तृष्णा का नाश करके दुःखों का निरोध करना है इसमें आचरण की पवित्रता आन्तरिक शुद्धता तथा हृदय की पवित्रता पर बल दिया गया है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
  3. प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
  4. प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
  7. प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  8. प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
  10. प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
  12. प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
  13. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
  14. प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
  18. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
  19. प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
  21. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
  22. प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
  23. प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  28. प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  31. प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
  32. प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
  33. प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
  34. प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
  35. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
  36. प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
  37. प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
  38. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
  40. प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
  41. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
  42. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
  43. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
  45. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  46. प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
  48. प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
  49. प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
  51. प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  52. प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
  53. प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
  54. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
  56. प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
  57. प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
  58. प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
  59. प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
  60. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
  61. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
  62. प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
  63. प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
  64. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
  65. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  67. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  68. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  69. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  70. प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
  72. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  73. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  74. प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
  75. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  76. प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
  77. प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
  78. प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
  79. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
  83. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  84. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
  85. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
  86. प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
  87. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
  88. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
  89. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
  90. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
  91. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
  93. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
  94. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
  95. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
  96. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
  97. प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
  99. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
  100. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
  101. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
  102. प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
  104. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  105. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
  106. प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
  108. प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।

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